INDIA: नियोजन यानी योजना और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा 2) 

केवल अपेक्षा ही नहीं थी बल्कि उम्मीद भी थी कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना न केवल गाँव के लोगों को रोज़गार का अधिकार देगी, बल्कि हमारी चरमराती शासन व्यवस्था (गवर्नेंस) को भी एक ठोस आधार देगी. यही वह क़ानून भी है, जिसने गाँव को यह अधिकार दिया कि वे अपनी योजना और बजट बनाएंगे, वे अधोसंरचनात्मक विकास की अपनी खुद की प्राथमिकताएं तय करेंगे, निगरानी करेंगे कि तय योजना के मुताबिक़ काम हो, किसी के अधिकार का हनन न हो, भेदभाव न हो. पहली बार सामाजिक अंकेषण को कानूनी रूप दिया गया. पर मंडला जिले की लावर मुडिया पंचायत के अनुभव हमें कुछ कठोर सीखें दे रहे हैं. वर्ष 2011-12 और वर्ष 2012-13 में इस पंचायत ने 364 जाब कार्डधारियों के आधार पर 56-56 लाख रूपए का बजट बनाया और योजना तय की, परन्तु इन दोनों ही वर्षों में यह पंचायत 20 से 22 लाख रूपए की राशि ही खर्च कर पायी और आधे से ज्यादा काम अधूरे रहे. यह विश्लेषण नहीं किया गया कि आखिर योजना बनाने में कहीं कोई गड़बड़ी है या क्रियान्वयन में. और इसके बाद भी वर्ष 2013-14 के लिये जो नई योजना बनायी गयी है उसका बजट है 80 लाख रूपए.

हम जानते हैं कि लावर मुडिया सरीखी हज़ारों पंचायतों के बजट के आधार पर ही देश का आर्थिक नियोजन होता है, और जब पंचायतें स्वीकृत बजट में से 45 प्रतिशत हिस्सा ही खर्च कर पायें तब यह अनुमान लगाना आसान है कि राष्ट्रीय बजट के स्तर पर इसके क्या विसंगतिपूर्ण प्रभाव हो सकते हैं. मैं यह कतई नही कहना चाहता हूँ कि पंचायतों और ग्राम सभा की नियोजन पद्धति में कोई लाइलाज खोट है, परन्तु यह सवाल जरूर है कि मनरेगा को लागू होने के आठ साल बाद भी क्या हम पंचायतों और ग्राम सभा को नियोजन की क्षमता से वाकिफ नही करा पाए हैं. मध्यप्रदेश ने वर्ष 2012-13 के लिये यह आंकलन किया था कि 1960 लाख मानव दिवस श्रम पैदा किया जाएगा. राज्य योजना के मुताबिक दिसम्बर 2012 तक यानी 9 माह में 1486 लाख मानव दिवस श्रम पैदा किया जाना था, वास्तविक स्थिति के मुताबिक दिसंबर 2012 तक कुल 760 लाख मानव दिवस श्रम ही पैदा किया जा सका है.

लालपुर के तिन्सई गाँव की कहानी कह रही है सरकार व्यवस्था बना रही है, पर लोगों का व्यवस्था  में से विश्वास टूट रहा है. यहाँ की निगरानी समिति से सदस्य और दमखम से बात कहने वाले शंकर सिंह मरावी कहते हैं हम गाँव के लोगों ने कई बार एक साथ बैठ कर रेडियो पर यह सुना है कि भारत सरकार ने हमारे गाँव के लोगों को रोज़गार की गारंटी दी है. हम मांग करेंगे तो 15 दिन में रोज़गार मिलेगा और काम करने के 15 दिन के अन्दर हमे अपने काम की मजदूरी मिल जायेगी. हमने आठ महीने पहले 15 दिन का काम किया था, इसकी मजदूरी आठ महीने बाद मिली. यह भी आसानी से न मिली, 15 बार तो पंचायत के चक्कर लगाए, चार बार जनपद आफिस गए. कलेक्टर को 3 कागज़ भेजे. ये कौन सी गारंटी है? अब तो यही लगता है सरकार की गारंटी की बात झूठी है और अच्छा तो यही है कि किसी ठेकेदार के यहाँ काम करें, अस्सी रूपए ही मिलते हैं पर शाम को मिल तो जाते हैं. तीन गाँव की पंचायत है लालपुर. आमतौर पर हम मानते हैं कि पंचायतों के सरपंच इस कार्यक्रम में भ्रष्टाचार का पलीता लगा रहे हैं. उन्होने अपने घर भर लिये हैं और गाँव के स्तर पर बनी पंचायती राज व्यवस्था के प्रति बनी उम्मीदों को तोड़ कर रख दिया है. यहाँ का एक व्यापक विश्लेषण बताता है कि पंचायती राज व्यवस्था को सरपंचों ने नहीं हमारी राज्य व्यवस्था और अफसरशाही ने भी गहरा आघात पंहुचाया है.

लालपुर के सरपंच मदन सिंह वरकडे अपनी पंचायत की जानकारी सामने रखते हुए बताते हैं कि इस पंचायत को वर्ष 2010-11 में मनरेगा के तहत 100 कामों की स्वीकृति मिली थी, इनमे से उन्होने 52 काम उसी वर्ष पूरे किये और 48 काम वर्ष 2011-12 में आकर पूरे हुए. इन कामों के मजदूरी करने वालों की मजदूरी का पूरा भुगतान जनवरी 2013 में जाकर हो पाया. वर्ष 2012-13 के लिये 25 कामों की तकनीकी स्वीकृति जारी की गयी पर 15 जनवरी 2013 तक यानी वितीय वर्ष के लगभग ख़त्म होने तकin कामों की राशि जारी ही नहीं हुई थी. पहले तो मदन सिंह कहते हैं कि चूंकि मजदूर काम पर नही आ रहे हैं इसलिए उसी वित्तीय वर्ष में काम पूरी नहीं हो पाए, पर शंकर सिंह मरावी इस तर्क का विरोध करते हुए कहते हैं कि मजदूरी का भुगतान ही नहीं होता है तो गरीब आदिवासी काम पर क्यों आयेंगे?  एक योजना जिसके तहत 371 जाबकार्ड धारी इस पंचायत को इस साल लेबर बजट के मान से 81 लाख रूपए का बजट प्राप्त हो सकता था, पर कोई राशि जारी न हो सकी. वर्ष 2011 में यहाँ एक जाबकार्डधारी को औसतन 30 दिन का ही रोज़गार मिला. अगले साल यानी 2012 में यह कम होकर 15 दिन के स्तर पर आ गया. यह तो बीमारी के लक्षण हैं जो हमें पंचायत के स्तर पर नज़र आ रहे हैं. बीमारी का कारण कहीं और है.

आज की स्थिति में हमें लालपुर और लावर मुडिया पंचायतों का अध्ययन करने की कोशिश की. एक आम व्यक्ति के नज़रिए से यहाँ की वार्षिक कार्ययोजना और वार्षिक योजना की प्लानिंग बिलकुल अस्पष्ट और घालमेल वाली नज़र आती है. मनरेगा के तहत वर्ष 2010-11 की योजना में यहाँ 100 काम तय किये गए और 60 लाख रूपए का बजट बनाया गया. इनमे से आधे काम पूरे नही हुए तो उन्हे अगले वर्ष यानी 2011-12 की कार्ययोजना में शामिल कर लिया गया और बजट बना 70 लाख रूपए का. साफ़ तौर पर यदि हम यह कहें कि इन दो सालों में लालपुर पंचायत को 1.30 करोड़ रूपए मिले तो क्या यह सही होगा? नही, बिलकुल नही! सच तो यह है कि इन्होने कुल 40 लाख रूपए ही खर्च किये. पंचायतों के स्तर पर उपलब्ध दस्तावेजों का कोई भी अपने स्तर पर अकेले अध्ययन नही कर सकता है, जब तक कि उस पंचायत के सरपंच-सचिव, जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, लेखापाल और कार्यपालन यंत्री और जिला कार्यक्रम अधिकारी से पूरा स्पष्टीकरण न मिले; जो कि ग्राम सभा को मिलना लगभग असंभव होता है. जरूरत इस बात की है कि एक बहुत ही स्पष्ट प्रारूप में कार्ययोजना, बजट आवंटन और व्यय की जानकारी गाँव को उपलब्ध हो. चूंकि इसे बहुत ही तकनीकी काम बना दिया गया है, इसलिए ग्रामसभा अकेले कभी भी सामजिक अंकेक्षण नही कर सकती है; क्योंकि उसे किसी व्याख्या के लिये सरपंच-सचिव और जनपद के अधिकारियों पर ही निर्भर रहना होगा.

इसका मतलब साफ़ है कि गांव में योजना बनाने से लेकर निर्धारित समय में मजदूरी के भुगतान से जुड़े कानूनी प्रावधान लागू ही नहीं हो पा रहे हैं. अब भारत सरकार के निर्देश हैं कि सभी काम पूरे किये जाएँ और उनके पूर्णता प्रमाणपत्र जारी किये जाएँ तभी मांग के मुताबिक़ राशि का आवंटन होगा. लालपुर और लावर मुडिया को देख कर तो लगता है कि अभी व्यवस्था को पटरी पर आने में बहुत वक्त लगने वाला है. बेहतर होगा कि नए नियमों के सन्दर्भ में जमीनी वास्तविकताओं का अध्ययन किया जाए.

*This is second article in an article series confronting with the issues plaguing the implementation of MNREGA in India.

About the Author: Mr. Sachin Kumar Jain is a development journalist, researcher associated with the Right to Food Campaign in India and works with Vikas Samvad, AHRC’s partner organisation in Bophal, Madhya Pradesh. The author could be contacted at sachin.vikassamvad@gmail.com Telephone:  00 91 9977704847

Document Type : Article
Document ID : AHRC-ART-023-2013
Countries : India,
Issues : Labour rights, Rule of law,